खास बातें
Rudraksha: रुद्राक्ष के वृक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के नेत्रों से निकली आंसुओं से हुई थी, तो आइए जानते हैं कि रुद्राक्ष के उत्पत्ति के पीछे की क्या वजह है।
Rudraksha: रुद्राक्ष को भगवान शिव के नेत्र का अंश माना गया है, क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के नेत्रों से गिरी आंसुओं से हुई है। इसलिए रुद्राक्ष को भगवान शिव को अंश स्वरूप माना जाता है। रुद्राक्ष का पौराणिक महत्व तो है कि साथ में इसका वैज्ञानिक पहलू भी है। तो आइए इस लेख में जानते हैं कि रुद्रास की उत्पत्ति कैसे हुई थी।
कैसे हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति
मान्यता के अनुसार त्रिपुरासुर नामक एक राक्षस था, जिसे अपनी शक्ति पर बहुत ही घमंड हो गया है। जिसके चलते उसने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया था। असुर को कोई भी देवता या अस्त्र-शस्त्र परास्त नहीं कर पा रहे थे और इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवगण भगवान शिव के पास गए। लेकिन भगवान उस समय अपनी तपस्या में लीन थे। कहा जाता है कि जैसे ही भगवान शिव ने अपनी आंखें खोली तो उनके नेत्रों से आंसुओं की बुंदें गिरीं और जिस स्थान पर वह बूंदें गिरीं, वहां पर रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई। इसलिए रुद्राक्ष को भगवान शिव के तीसरे नेत्र के रूप में भी पूजा जाता है।
इसके अलावा एक और पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि जब माता सती अग्नि में आत्मदाह के लिए चली गईं थीं, तब महादेव अत्यंत विचलित हो गए, उन्होंने माता सती के विलाप में तीनों लोगों का विचारण किया था और अपने विचारण के दौरान भगवान शिव स्थान पर गए वहां पर उनके आंसू गिरते रहे और कहा जाता है कि उन स्थानों पर रुद्राक्ष के वृक्ष का जन्म हुआ।
रुद्राक्ष के लाभ
रुद्राक्ष को बेहद ही पवित्र माना गया है और इसकी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि रुद्राक्ष में भगवान शिव के साथ-साथ माता लक्ष्मी जी भी वास करती हैं। रुद्राक्ष को धारण करने से जातक को दीर्घायु की प्राप्ति होती है। इसके अलावा रुद्राक्ष को गले में धारण करने से हृदय रोग का खतरा भी टाल जाता है। यदि आप प्रतिदिन रुद्राक्ष की माला के जरिए ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करते हैं तो आपको भगवान शिव की कृपा अवश्य ही प्राप्त होती है। साथ ही रुद्राक्ष धारण करने से ज्ञान की भी सिद्ध होती है।
कौन प्रकार से रुद्राक्ष कौन से हैं?
भगवान शिव को 14 रुद्राक्ष प्रिय है और यह 14 रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर 14 मुखी तक हैं। पहला है एक मुखी रुद्राक्ष, जो कि भगवान शिव का ही अंश माना जाता है। दूसरा, दो मुखी रुद्राक्ष अर्धनारीश्वर का माना जाता है। तीन मुखी रुद्राक्ष अग्नि का स्वरूप है। चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा का स्वरूप है। पांच मुखी रुद्राक्ष को कालाग्नि का स्वरूप है। 6 मुखी रुद्राक्ष को कार्तिकेय का स्वरूप माना गया है। सात मुखी रुद्राक्ष को कामदेव का स्वरूप माना जाता है। आठ मुखी रुद्राक्ष को काल भैरव और भगवान श्री गणेश का स्वरूप माना गया है। 9 मुखी रुद्राक्ष को माता भगवती और शक्ति का स्वरूप माना गया है। 10 मुखी रुद्राक्ष को यम और दसों दिशाओं का स्वरूप माना जाता है। 11 मुखी रुद्राक्ष को भगवान रुद्र का स्वरूप माना गया है। 12 मुखी रुद्राक्ष को अग्नि, तेज और सूर्य का प्रतीक माना जाता है। 13 मुखी रुद्राक्ष को सफलता और विजय का प्रतीक माना जाता है। 14 मुखी रुद्राक्ष को स्वयं भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है।
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